Friday, July 31, 2015

अनकही .....

आज फिर से दिल उदास सा हुआ है मेरा ,
वजह पता नहीं है और ना जानने की इच्छा है। 

पर कुछ है अनजाना सा है मेरी ज़िन्दगी में,
जो जाता है और आता है लौट कर बार बार। 

हर बार खुद का कुछ हिस्सा मुझमे छोड़ जाता है ,
और कुछ मेरा हिस्सा अपने साथ ले जाता है। 

फिर आखिर में रह जाता हूँ मैं कुछ अधूरा सा ,
करता हूँ क़वायद शुरू फिर से खुद को पूरा करने की। 


ना हार मानने को जी चाहता है न कोशिश करने को ,
जब भी नज़र आता है धुंधला सा अक़्स मेरे जेहन में।  

अब तो डर लगने लगा है ज़िन्दगी से इस सोच में की ,
कहीं मरना मेरा जीने जितना मुश्किल तो ना होगा। 
  


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