Be it love, affection, friendship or any other relationship, if efforts are one sided then it's going to hurt you sooner or later. It's up to you whether you want to express your feelings or not because after a certain amount of time you know no matter how much you express it doesn't change things. With the time you wait for things to end by themselves because you can't leave it, you just can't move on. It pains yet it feels comfortable somehow. I don't know what is the threshold of human's heart to bear the pain but I know one thing that it gets even tougher to see yourself being the right person and still ending up with suffering. May be there is no other way around or may be we don't want to find one. The saddest part is you can't stop making efforts even if you lose yourself. Each time it becomes harder to rebuild the self but the atom of optimism just never stops blooming. Hopefully that's how love is supposed to work, a little selfish with lots of selflessness and if not then even love needs an redemption.
Zindagi!! Naam jeene ka
Friday, May 13, 2022
Tuesday, April 4, 2017
माँ
घड़ी के काँटे सुबह के 10.30 की और इशारा कर रहे थे। ऑफिस जाने के वक़्त से थोड़ा सा ज्यादा। नहानघर में पानी गिरने की आवाज़ से ऑफिस पहुँचने में हुई देरी का अंदाज़ा लग रहा था। दूसरी बार बजी मोबाइल फ़ोन की घंटी ने अपनी ओर ध्यान खींचा और मोबाइल की स्क्रीन पर जो नाम दिख रहा था वो था Mummy। ज़ल्दबाज़ी में कॉल रिसीव करके बिना सुने मैंने कहा -
हाँ Mummy, अभी लेट हो रहा हूँ, ऑफिस पहुँच कर बात करता हूँ।
Mummy - ठीक है बेटा। ऑफिस जा कर बात करना।
कुछ देर बाद ( वक़्त 11.15) ...
ऑफिस के एक और दिन की शुरआत हो चुकी थी और दिनों जैसे। मैंने अपना फ़ोन उठाया और कॉल किया Mummy को।
मैंने पूछा - हाँ mummy। क्या हुआ, कैसे फ़ोन किया था।
Mummy - ऐसे ही। बस आज कढ़ाई ( नवरात्रों में अष्टमी के दिन की जाने वाली एक रस्म) की थी। पूरी, छोले और हलवा बनाया था खूब सारा तो तेरी याद आई। सबने खाया बस तू ही रह गया। तेरे भाई-भाभी (जो फ़िलहाल नौकरी के लिए विदेश में रह रहे हैं ) ने भी बनाकर खा लिया।
मैंने कहा - कोई बात नहीं mummy। आप जब आओगे मेरे पास तो बना कर खिला देना। और किस्मत में होगा तो हर साल के जैसे कोई ना कोई घर से ले आएगा और मैं खा लूंगा।
Mummy - हाँ बेटा। कोई लाये तो खा लेना मुझे अच्छा लगेगा और तेरे पास सब बर्तन तो है ना? नहीं तो में बना कर ले आउंगी जब आना होगा। ठंडी खा लेगा ना?
मैंने कहा - हाँ mummy खा लूंगा और सब बर्तन है मेरे पास जब आप आओगे तब बना देना।
मैंने कहा - mummy, मैं रात में फिर से फ़ोन करता हूँ।
Mummy - ठीक है, मैं आराम करती हूँ सुबह 5 बजे से उठी हूँ।
मैं - ठीक है।
कुछ और देर बाद (वक़्त 11.27)..
लैपटॉप की स्क्रीन पर सहकर्मी का एक मेल - Prashad at my desk !!
उसे बिना पढ़े मैं अपनी सीट से उठा एक ही सोच से की शायद मेरी माँ की इच्छा हर बार जैसे किसी के जरिये पूरी होने वाली है। पहुँचने पर देखा तो वही पूरी, छोले और हलवा रखे थे। उस वक़्त मुझे खाने से ज्यादा ख़ुशी इस बात की थी मेरी माँ को जब बताऊंगा की मैंने खा लिया था तो उनकी रुंधे गले से ख़ुशी के साथ यही निकलेगा - चलो अच्छा है खा लिया।
यही सिलसिला पिछले कुछ बीते सालो से बद्दस्तूर चला आ रहा है। माँ फ़ोन करती है ऐसे किसी मौके पर, मेरे वहां नहीं होने पर याद करती है और दुआ करती है की मुझे घर का खाना खिला पाती और उसकी वो दुआ किसी ना किसी बहाने पूरी हो ही जाती है। शायद यही वजह होगी की माँ को सबसे ऊपर माना गया है और मेरे लिए मेरे भगवान से भी बढकर।
Wednesday, August 31, 2016
तेरी याद |
हर एक रात वही बात हो जाती है,
आंखे थक कर बंद हो जाती है
पर फिर भी नींद नहीं आती है
क्यों, क्योंकि तेरी याद चली आती है।
प्यार करने को बस तन्हाई रह जाती है,
दिलो-दिमाग पर चुप्पी छा जाती है ।
पर फिर भी नींद नहीं आती है,
क्यों, क्योंकि तेरी याद चली आती है।
अंधेरा भी कुछ अधूरा सा रह जाता है,
सांसे थमने लग जाती है ।
पर फिर भी नींद नहीं आती है,
क्यों, क्योंकि तेरी याद चली आती है।
उलझी पहेलियां सुलझाने की,
खुद को समझाने की, बदलने की,
जिंदा रखने की, खुश रहने की।
इस कशमकश में पता नहीं चलता
कि नींद कैसे आ जाती है?
कुछ पहर बाद उलझन अब भी वही रह जाती है,
क्यों, क्योंकि दूसरी सुबह तेरी याद फिर चली आती है।
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